...

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क्या लिखूं मैं
क्या लिखूं मैं
की डूबता हुआ सूरज थम जाए
क्या लिखूं मैं
की अनंत सागर का पानी जम जाए
क्या लिखूं मैं
की श्रोता की धड़कन बढ़ जाए
क्या लिखूं मैं
की कमल भी पर्वत पर उग जाए
क्या लिखूं मैं
की हर कोना इत्र सा महक जाए
क्या लिखूं मैं
की हर पत्थर भी कस्तूरी बन जाए
क्या लिखूं मैं
की कौआ भी कोयल सा हो जाए
क्या लिखूं मैं
की हर पुरुष नारी के आगे नतमस्तक हो जाए
क्या लिखूं मैं
की आलोकित सा एक जादू हो जाए
क्या लिखूं मैं
की मेरे शब्द भी गंगा से पावन हो जाए
© Navi