...

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प्रेम का पर्याय हो तुम
मेरी साँसें जिसे हरदम गुनगुनाए वो साज हो तुम,
दुनिया की नजरों से छिपाके रखा वो राज हो तुम।

तुम्हें सोचकर ही आ जाती है मेरे चेहरे पे ये रौनक,
वो ख़ुशी, रूह का सुकून मेरे दिल मिज़ाज हो तुम।

तुम्हें सोचें बिन मुश्किल है गुज़ारा अब जीवन का,
इस तन्हा सफ़र में बिमार दिल का इलाज़ हो तुम।

ख़ामोश है ये सोचकर कहीं तू बदनाम ना हो जाए,
ख़ामोश रहकर जिसे हरदम सोचूँ वो काज हो तुम।

लफ़्ज़ों में कैसे बताऊँ कौन हो तुम मेरे "पुखराज"
प्रेम का पर्याय बनकर मेरा कल मेरा आज हो तुम।

© पुखराज