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बेपरवाह ज़िंदगी _ख़ूबसूरत ज़िंदगी
#ज़िंदगी #बेबाक़ #बेपरवाह

जब तक बेबाक़
बेपरवाह से होते हैं हम
ज़िंदगी लब्ध लगती है
जहाँ समझदार हुए
सब प्रदत्त है
ये सोचने लगते है हम
बस यही अवसान है
साँस का भरोसा क्या
कब बंद हो जाए
पर हमें क्या, हम समझदार है
जी तो रहे हो ना
ख़ुद को दिलासा देते हुए
बड़े ही ग़ुमान में होते है हम
तो क्या हुआ जिया ही नहीं
ऐसा महसूस करते हो
‘महसूसियत ‘को कौन सुनता है
देखो शिकायत ना करो
इसे तो तुम ख़ुद भी अनसुना करते हो
फिर ग़ैरों से क्या उपेक्षा रखते हो
तो बस शिकवा ना करो
यूँही जीते रहो
क्यूँकि साँसो का कारवाँ तो चल ही रहा है
और जी तो रहे हो तुम

© Ritu Verma ‘ऋतु’