...

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अंत में...
तुमने कभी नहीं चुना मुझे
जीवन के रास्तों में
मैं तो बस बच गई तुम्हारे पास
जब कोई ना रहा
अंत में...

उस खामोशी की तरह
जिसे कोई नहीं सुनता
बस जो रह जाती है
हर बार तुम्हारे जेहन में
किसी सुरीले गीत के बाद
किसी कहानी के खत्म हो जानेपर
किसी रूमानी कविता के
अंत में...

उस अंधेरे की तरह
जिसे कोई नहीं पुकारता
सब चुनते हैं नायाब रौशनी
खिलती भोर, चमकते सितारे,
पर जो समेट लेता है तुम्हें अपने आगोश में
जब हर उजाला साथ छोड़ देता है
अंत में...

अब जब भी तुम खामोश बैठ कर
अंधेरे में खुद से गुफ़्तगू करते हो
रखते हो तुम मुझे अपने साथ
बच जाती हूं तुम्हारे पास
अंत में...


© आद्या