...

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अजीब दास्ताँ
ग़म- ए- ज़िंदगी की अजीब दास्ताँ सुनाएं किसको,
सीने में भरा है दर्द का एक आसमाँ दिखाएं किसको।

मयस्सर नहीं अब तो खुशी का एक भी पल,
गुज़रे हैं हम पर कैसे-कैसे इम्तिहाँ बताएं किसको।

किसी के हिज़्र में रहती हैं हर पल नम ये आँखें,
अपने दर्द की आह- ओ- फुगाँ सुनाएं किसको।

बेवजह ही ज़ार- ज़ार धड़कता है ये दिल,
सीने में बसा तेरी यादों का आशियाँ दिखाएं किसको।

मोहब्बत की कलियाँ मुरझा गई खिलने से पहले,
अपने दिल का ये उजड़ा गुलिस्ताँ दिखाएं किसको।

ना मिली ज़मीं ना ही मयस्सर हुआ आसमाँ हमको,
बेबसी में गुज़री ज़िंदगी की दास्ताँ सुनाएं किसको।