...

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नागपुर
मंजिल ही तो लुप्त हुई हैं
हमने कहां चलना छोड़ दिया

फासले सदियों के तय किए हैं
वे दूरियां बढ़ाते रहे, धोखे से
हमने वफा निभाई वतन से
तुमने गद्दार हमें करार दिया
हमने कहां चलना छोड़ दिया

वतन की परवाह है मुझे भी
नमक देश खाया यह याद है
वतन मेरे जिगर में बसा है श्री
मैंने हिसाब बताना छोड़ दिया
हमने कहां चलना छोड़ दिया

अकेला ही चलूंगा पुरखों सा
भीड़ को हमेशा बहका दिया
नागपुर में ही नागपुर की तरह
तेरे हर चक्रव्यूह को तोड़ दिया
हमने कहां चलना छोड़ दिया

मंजिल दूर हुई तो क्या हुआ
हमने कहां चलना छोड़ दिया

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