कविता: कुदरत का वरदान
कविता: कुदरत का वरदान
कुदरत कितना देती है,
सेम से लदी छिमियां,
सरसों के पीले चादर से
सजते खिले खलिहान सुहाने।
सुंदर स्वच्छ हवाएं बहें,
शीतल मन को करतीं,
हरे-भरे ये खेत-खलिहान,
जीवन में नव रंग जैसे भरतीं।
नदी की कलकल धारा देखो,
है, संगीत मधुर सुनाती,
पर्वत की ऊँचाई में में जैसे,
संकल्प नित नए जगाती।
फूलों की महक अद्भुत जैसे,
है, हर दिशा को महकाती,
हर रंग में जीवन के,
नव उमंग है, दिखलाती।
कुदरत का यह अनमोल उपहार,
सदा हमें राह दिखलाते है,
संभालें इसे अपने जीवन में,
यह हमारी धरोहर कहलाते।
व्याख्या
इस कविता में कवि ने प्रकृति की महिमा और उसकी उदारता का वर्णन किया है। कविता में बताया गया है कि कैसे कुदरत हमें भरपूर संसाधन देती है। खेत-खलिहान, नदी-धारा, पर्वत, और फूल सभी जीवन को सुंदर और प्रेरणादायक बनाते हैं। यह कविता प्रकृति की सुंदरता और...
कुदरत कितना देती है,
सेम से लदी छिमियां,
सरसों के पीले चादर से
सजते खिले खलिहान सुहाने।
सुंदर स्वच्छ हवाएं बहें,
शीतल मन को करतीं,
हरे-भरे ये खेत-खलिहान,
जीवन में नव रंग जैसे भरतीं।
नदी की कलकल धारा देखो,
है, संगीत मधुर सुनाती,
पर्वत की ऊँचाई में में जैसे,
संकल्प नित नए जगाती।
फूलों की महक अद्भुत जैसे,
है, हर दिशा को महकाती,
हर रंग में जीवन के,
नव उमंग है, दिखलाती।
कुदरत का यह अनमोल उपहार,
सदा हमें राह दिखलाते है,
संभालें इसे अपने जीवन में,
यह हमारी धरोहर कहलाते।
व्याख्या
इस कविता में कवि ने प्रकृति की महिमा और उसकी उदारता का वर्णन किया है। कविता में बताया गया है कि कैसे कुदरत हमें भरपूर संसाधन देती है। खेत-खलिहान, नदी-धारा, पर्वत, और फूल सभी जीवन को सुंदर और प्रेरणादायक बनाते हैं। यह कविता प्रकृति की सुंदरता और...