...

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वही हूँ मैं...
अब तो तुम और ज़माना जो समझे वही हूँ मैं,
मानते रहो ख़ुद से तुम दूर, पर खड़ी यहीं हूँ मैं।

वादा किया था तुमने मगर ख़ुद उसे निभाऊँगी,
तुम रहो महफ़िल में, सदा ही तो तन्हा रही हूँ मैं।

आदत है मुझे अपनों से मिली नज़रअंदाज़ी की,
तुम बने रहो नूर-ए-नज़र, उन्हीं से तो बही हूँ मैं।

कहलाने दो मुझे बुरा, मार लेने दो मुझे ताने भी,
बताते रहो तुम ग़लत, मुझे है मालूम सही हूँ मैं।

जिसे जितना माना, वो उतना अपना नहीं 'धुन',
कोई जहाँ चाहे वहाँ जाये, जहाँ थी, वहीं हूँ मैं।
© संगीता साईं 'धुन'

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