...

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स्त्री वो संगीत है
गुनगुना सके जिसे एकान्त में स्त्री वो संगीत है।
महफ़िल में चार चाँद लगा दे जो स्त्री वो गीत है।

गुलज़ार कर देती है वो माली सूनसान शजर भी,
दूर रह कर भी जो कुर्ब़त में हो स्त्री वो मीत है।

बँध जाती है बन्धन में जो सारे बन्धन तोड़कर,
ज़िन्दगी की डोर बन जाती है स्त्री वो प्रीत है।

बसा देती है खण्डहर में आलिशान आशियाना,
चला देती है जो एक नई प्रथा स्त्री वो रीत है।

सप्त स्वर संगीत सा संगिनी सुखमय बना देती,
मुरली बन कर मन मोह लेती स्त्री वो जीत है।

© पी के 'पागल'