...

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अभिलाषा
अभिलाषा है कुछ पाने की, अंतस मन में छा जाने की
एक सितारा बन करके, हर घर को रोशन कर जाने की
मुठ्ठी में भर करके मिट्टी, आसमान को छू जाने की
दौड़ लगाते जीवन पथ पर, बादल बनकर उड़ जाने की
जन-जन की आवाजों की, एक गूंज बनाकर लड़ जाने की
लड़ते-लड़ते ख़ुद से आगे, जीवन में कुछ कर जाने की
आशाओं को हिम्मत देकर, हर बाधा से भिड़ जाने की
ठान लिया एक बार दफा जो, उस एक ज़िद पर अड़ जाने की
चक्रव्यूह कैसा हो रण में, अडिग खड़ा मैं अपने प्रण में
धूल-धूल हो जाए चाहे, जीवन भी इस जीवन ऋण में
फिर भी पौरुष क्षितिज न देखे, मन ये मन को विकल न देखे
आज बनूं मैं कीर्तिमान ख़ुद, सिर ये चाहे कल ना देखे
इसी धरा से उन्नत होकर, इसी धरा में मिल जाने की
बन करके मुस्कान दिलों की, हर चेहरे पर खिल जाने की.....
© Er. Shiv Prakash Tiwari