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घर
घर
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एक घर चाहिए था सरोजा बुआ को
कोई महल-अटारी वाला नहीं
बस एक ऐसी छत जो बारिश में गिर कर उनके बच्चे की जान न लेती
मायके में पिता ने बड़ा घर बनवाया
दुवारे एक मंदिर भी बनवाया
लेकिन बुआ का ठिकाना वहाँ कहाँ
पिता-भाई की बदनामी हो रही थी बुआ के नैहर में रहने से

एक बार बच्चों को लेकर दस महीने रह गईं थीं बुआ
गाँव से लेकर खलिहान तक
अपने घर कब जाओगी का जहर बुझा सवाल सुनती
वो हँस कर रह जातीं थीं

जबकि बुआ का अपना कोई घर नहीं था
न यहाँ न ससुराल में
बुआ की बपंशी में उन्हें मिला
नशे में बर्बाद एक पति और एक गिरता हुआ कच्चा घर

वही घर जो एक दिन भादों की भयानक...