...

7 views

घर
घर
-------
एक घर चाहिए था सरोजा बुआ को
कोई महल-अटारी वाला नहीं
बस एक ऐसी छत जो बारिश में गिर कर उनके बच्चे की जान न लेती
मायके में पिता ने बड़ा घर बनवाया
दुवारे एक मंदिर भी बनवाया
लेकिन बुआ का ठिकाना वहाँ कहाँ
पिता-भाई की बदनामी हो रही थी बुआ के नैहर में रहने से

एक बार बच्चों को लेकर दस महीने रह गईं थीं बुआ
गाँव से लेकर खलिहान तक
अपने घर कब जाओगी का जहर बुझा सवाल सुनती
वो हँस कर रह जातीं थीं

जबकि बुआ का अपना कोई घर नहीं था
न यहाँ न ससुराल में
बुआ की बपंशी में उन्हें मिला
नशे में बर्बाद एक पति और एक गिरता हुआ कच्चा घर

वही घर जो एक दिन भादों की भयानक आंधी-पानी की रात में गिरा
बुआ का सोता हुआ सोलह साल का बेटा दबकर मर गया

अब सरकार ने बच्चे की मौत का मुआवजा दिया और बुआ का घर बना
अब उसी घर में बुआ रहतीं हैं और अचानक दुपहरिया-तिजहारिया हिचक-हिचक कर रोने लगती हैं
घर की लाल ईंटें उन्हें
अपने बच्चे के खून से रंगी लगती हैं
घर को एकटक निहारतीं अचानक कहतीं हैं "जिउधारी है ये घर, भैया की जान लेकर बना"
समय जैसे पहाड़ हो गया है बुआ के लिए
आज
"अपने घर जाकर रहो" कहते पिता नहीं हैं
उस बच्चे को झिड़कती बुआ की माँ भी नहीं हैं
और अपनी मामी के हिसाब में
बहुत रोटी खाता बुआ का वो बच्चा भी नहीं रहा
जिसे लेकर मायके में वो
घोर अपमान सहती घूर बनी पड़ी रहतीं
अब वही घर है जिसके न होने से बेटा मर गया
और जिसके होने का आधार बेटे की मौत है

मैं सोचती हूँ ऐसे पिता-भाई हत्यारों की किस श्रेणी में आते जो जीते हैं सुख-सुविधा का भरपूर जीवन
और अपनी बहन-बेटियों को छोड़ देते हैं रिवाजों के यातनागृहों में।


© kajal