...

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इक शाम
इक शाम में था मंज़र हसीन
क्योंकि तुम मेरे साथ में थी
सारे ग़म मै भूला वहां पे
खुशियां मेरी तेरे हाथ में थी

होश था थोड़ा
थोड़ी मदहोशी थी
तेरी नज़रों से
मुझको बेहोशी थी

तेरे आगोश में जाना था
तुझको जरा अपनाना था
ख़्याल मेरा हक़ीक़त बनें
अब तक तो ये फ़साना था

रंग इश्क़ का बरसा यहां पे
दिल बेतहाशा तरसा यहां पे

हया से देख तुम नजरें झुकाओ
ये कैसा इश्क़ तुम जताओ
कब से अपना हाल ऐ दिल हम हीं कह रहें
थोड़ा तो जरा तुम बताओ

गीत मैं लिखूं,प्रीत मैं लिखूं
इश्क़ की कोई रीत मै...