...

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बातों ही बातों में
बातों ही बातों में बात बन जाती है,
बात जो निकली,
बात दूर तलक जाती है,
बातों ही बातों में बात बतंगड़ हो जाती हैं,
बात क्या कही,बात क्या रह जाती है,
बात बात में कोई मुंह फुलाती हैं,
बात कोई पिछली लेकर, लड़ जाती हैं,
बात भी खुद पर
नमक मिर्च लगाती हैं,
बात एक की
चार बात बन जाती हैं,
बात ही बात में
फिर बात छिड़ जाती हैं,
बात कही हुई
गहरे घाव लगाती हैं,
बात प्रेम की
मरहम भी बन जाती हैं,
बात बात में
यारी भी हो जाती हैं,
बात बिगड़े
युद्ध की तैयारी भी हो जाती हैं,
बात करो तो
बात सुलझ जाती है,
बात हो बंद तो
बात उलझ जाती है,
बात जो निकली
बात कहां रह जाती हैं,
बात ही बात में
यूं ही बात बन जाती हैं।


© अल्फाज