मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
बेगुनाह होकर भी देखो कैसे ,
सब अपने ही घर में कैदी है,
ये नजदीकियां से फासले तक कि दूरी है ,
पर आखिर मिलना भी तो...
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
बेगुनाह होकर भी देखो कैसे ,
सब अपने ही घर में कैदी है,
ये नजदीकियां से फासले तक कि दूरी है ,
पर आखिर मिलना भी तो...