...

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खोज
एक राह पर निकला हूँ
एक राह जिसका कोई अंत नहीं है
कहने को ये सफर है
पर मेरा कोई हमसफर नहीं है

शायद इस सफर में
मैं कुछ खोज रहा हूँ
मिला तो अभी तक कुछ नहीं
पर निकल तो रोज रहा हूँ

देखता हूँ इस जग को
इन लोगों को मैं
कोई किस्मत का मारा
कोई आंखों का तारा
कोई लक्ष्य को तलाशता
कोई दुनिया से भागता
कोई हैरान है, कोई परेशान है
कोई पहचान बना रहा है
कोई पहचान छिपा रहा है
कोई जगत से अनजान है
तो किसी से ये जगत ही अंजान है

इन लोगों के गम में,
इनके दुख में
इनकी संतुष्टि में,
इनके सुख में

मैं न जाने क्या खोज रहा हूँ
मिला तो अभी तक कुछ नहीं
पर निकल तो रोज रहा हूँ।

© Sanदेश