...

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खूबसूरती कुदरत की
आज बैठी थी लिखने पर कहीं खो गई मैं,
ऐ क़ुदरत तेरे रंगो में ,
सराबोर हो गई मैं,
कोयल की कूक- कूक चिडिय़ा की चीं-चीं,
मस्त पवन के ठंडे झोंकों की हो गई मैं|

आज बैठी थी लिखने पर कहीं खो गई मैं....
ऐ क़ुदरत तेरे रंगो में सराबोर हो गई मैं,

वो चल रहे काले बादलों की गरगराहटों में ,
छम- छम करती बारिश की,
बुंदों की मधूर ध्वनि में,
बावरी सी हो गई मैं,
शिवालिक की पहाड़ीयों में ,
माँ नैना देवी के भवन की,
खूबसूरती के आगे नतमस्तक हो गई मैं|

आज बैठी थी लिखने पर कहीं खो गई मैं....
ऐ क़ुदरत तेरे रंगो में सराबोर हो गई मैं,

ढल रहे सूरज की लालिमा के ,
नज़ारे की गहराईयों में ,
ओर सांय -रात के अद्भुत मिलन की,
तसवीर को दिल के भीतर उतार कर,
वहीं पर खुले आसमान के नीचे ,
नींद की आगोश में सो गई मैं|

आज बैठी थी लिखने पर कहीं खो गई मैं....
ऐ क़ुदरत तेरे रंगो में सराबोर हो गई मैं,