...

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तुम मेरे साथी
कहाँ तुम छूटते बादल
क्या ये सहज तुम हो
तुम स्नेह की खाड़ी हो
अनभिज्ञ तुमसे कहा रहे
तुम पावन सरिता
मुझे पवित्र करती प्रेम से
तुमसे मुझे वरदान मिला हुआ
दिव्य ज्योति हृदय में प्रवाहित
मैं तुमसे मिलने को आता
कही दूर उपवन में नयन मिलते
बात हृदय की आरंभ होती
तुम मेरे साथी ।