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निगाहों से सच झूठ का आईना चाहता हूं........✍🏻
मैं इक नज़र भर कर देखना चाहता हूं
उन आंखों पर अपना सब्र रखना चाहता हूं
पढ़ने बैठा हूं मैं उन निगाहों की हया को यूं
झुकती हुई नज़र को मैं यूं टोकना चाहता हूं

निगाहों ही निगाहों में तमाम बातें हो जाती है
अजी उन इशारों का तो मैं भी रास्ता चाहता हूं
ज़िक्र क्या करूं साहब उस दिलरुबा का आज
मैं बस इश्क़ मोहब्बत का सिलसिला चाहता हूं

आज मन में कुछ इस कदर उठने...