...

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वहीं शहर
बड़े बड़े घर और उनकी छत,
एक घर की दूसरे घर से लगी हुई,
छोटी बड़ी खिड़कियां,
रोशनदान,
हर घर में गुड़हल का पेड़,
शहर भर से आते लोग,
फूल को तोड़ने के लिए,
मंदिर में चढ़ाने के लिए,
कुछ घरों में चंपा चमेली और मोगरा भी
अपनी सुगंध बिखेरता है,
मोगरे की वेणी बनना कितना
आसान है,
घंटों वेणी बनाती औरतें,
रोड के किनारे,
मंदिर में आस्था का समंदर,
कुछ सड़क के किनारे में
बैठे मोची,
बड़ा सा काला छाता लिए,
कुछ साइकिल पंचर सुधारते
काले चिपचिपे हाथ लिए लोग,
टायर का पाइप निकाल के धोते,
कुछ मिस्त्री ईंट से ईंट जोड़ के
घर बनाते,
सीमेंट से छपाई करते,
कुछ उफान पे बहते नाले,
पसलियां दिखाते नाबालिग लड़के
इनमें डूब के सफाई करते,
छोटी बड़ी दुकानें,
उनमें छोटे छोटे मंदिर जिनमें
विराजते गणेश जी,
हर दुकान में अगरबत्ती,
बाहर तक लहराते कपड़े,दुपट्टे,
प्लास्टिक के डब्बों का ढ़ेर,
कुछ जगह स्टेच्यू कपड़े
का प्रदर्शन करती...
हिलोरे मारती तालाब में लहरें,
कुछ जगह सूखे गेंदें की लड़ियां,
अपना अस्तित्व खोजते अजीब से
काले गोरे चेहरे,
बचपन,युवा,अधेड़ और वृद्ध,
समय का निरंतर चलता फेर
बिना रुके...





#शहरीदृश्यकाव्य
© ©Farah Naseem