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⚠धरा की चेतावनी⚠
सो चुकी है सभ्यता सारी,
कितनी अच्छी बात है ।
परवाह इन्हें न धरती की है,
यह कितनी निष्ठुर बात है।

जाग जाओ है मनु ,
तेरे विवेक को पुकार है।
देख रहा क्या इस धरती को तू !
यह बेचारी लाचार है ।

(ये धरती मां बोल रही है:)

विनती तुमसे बहुत की थी मैंने ,
अब दर्द से चीख रही -चिल्ला रही ।
निर्वस्त्र हो रही अब तो मैं ,
इस ब्रह्मांड में इज्जत खोते जा रही।

बड़े चमकते तारे अब,
इस बदन को झुलसा रहे,।
शीतलता जिन तरु से मिलती ,
वह सब उखड़ते जा रहे।

आकर्षण की बातें थी मुझमें,
नीलमणि जड़ा था मुझमें।
जल मेरा बहुत शीतल था,
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