क्या लिखूं..?
देर रात तक आंखें टक टकी लगाए बैठी हैं
घड़ी की सुई... टक.. टक... टक....!
मन में उमड़ते हैं कई उलझें हुए विचार
दिल होता रहा उसका धक.. धक.. धक...!!
ये आस उसकी हैं जो
पिता के आने के इंज़ार में हैं
जो लोग अक्सर नौकरी के लिए
बहार दूसरे शहर जाया करते हैं.
ऐसे बच्चे अक्सर मन मार कर
पिता के आने के इंतजार में
सों जाया करते हैं
ऐसी ही कई मजबूरीयां हैं जो
अपनों को गैर बनया करती हैं
घड़ी की सुई... टक.. टक... टक....!
मन में उमड़ते हैं कई उलझें हुए विचार
दिल होता रहा उसका धक.. धक.. धक...!!
ये आस उसकी हैं जो
पिता के आने के इंज़ार में हैं
जो लोग अक्सर नौकरी के लिए
बहार दूसरे शहर जाया करते हैं.
ऐसे बच्चे अक्सर मन मार कर
पिता के आने के इंतजार में
सों जाया करते हैं
ऐसी ही कई मजबूरीयां हैं जो
अपनों को गैर बनया करती हैं