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वेदना
इस समाज में सभी वेदना से ग्रसित हैं,
प्रत्येक व्यक्ति किसी ना किसी दुःख से पीड़ित है।
जो अमीर है उसे अपने लाभ-हानि का दुःख है,
जो गरीब है वो अपने जीवन से ही रूष्ट है।
भ्रष्टाचार से मिली कमाई को नेता संभाल नहीं पा रहे हैं,
योग्य होकर भी व्यक्ति बेरोजगारी के कारण ठोकरें खा रहे हैं।
पीड़ित व्यक्ति न्याय के लिए कोर्ट के चक्कर काट रहे हैं,
अपराधी सजा का नाम सुनते ही भाग खड़े हो जा रहे हैं।
स्त्री समाज व अपने घर में उत्पीड़न का शिकार हो रही है,
खुले बाज़ार में खड़ी ये दुनिया सरेआम बस तमाशा देख रही है।
अपनी निराशा व क्रोध को लोग बस दूसरों पर उतार रहे हैं,
स्वयं को और अपने परिवारजनों को कष्ट पहुंचा रहे हैं।
कहीं बच्चे रुपयों की कमी के कारण शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं,
कहीं माता पिता बिगड़े बच्चे को पढ़ाने की तमाम कोशिशें किए जा रहे हैं।
किसी के पास खाने को अन्न का एक दाना नहीं है,
किसी को परहेज़ के कारण आहार लेना ही नहीं है।
जीवन के अंतिम क्षण में व्यक्ति दुनिया के रंग देखना चाहता है,
जो स्वस्थ है वो अपना जीवन व्यर्थ में ही नष्ट करना चाहता है।
ये कैसी दुनिया है जहां सभी के हृदय बस वेदना से भरे हुए हैं,
छोटी सी मुस्कुराहट में भी असंख्य दुख छुपे हुए हैं।

© Garima Srivastava

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