सदियों का पेड़
#सदियोंका_पेड़
चलो तो फिर शुरुआत करते हैं मेरे बचपन से लेकर अब तक के सफ़र का पंचनामा.
जी हाँ ,एक पेड़ है मैंने उसे बचपन से लेकर अब तक देखती आ रही हूं।पर गौरतलब है वह पेड़ मेरे परिवार की अब चौथी पीढ़ी को देखने का सौभग्य पा रहा है।
कितना अजीब है न,,,ये वही पेड़ है।जब मै पांच साल की थी और पहली बार मैंने उस पेड़ को देखा।
पीपल का हर भरा, गठीला सूंदर और भव्य आकृति लिए बड़ा ही मनमोहक लगता था ,उसकी छांव में न जाने कितनों को बचपन ,जवानी और बुढापा गुज़रा है।कितनो के बचपन के खेलकूद,जवानी की अटखेलियां से लेकर बुढ़ापे और यहाँ तक उस पेड़ ने कितनों को अंत समय में विदा भी किया है।
ये तो वो लोग थे जिन्होंने उस पेड़ की छांव में अपना जीवन गुज़ारा था।
इसमें कुछ वो लोग भी शामिल हैं ,जो अजनबी,परदेसी हुआ करते थे,अक्सर बस की राह निहारते हुए कितने घंटे इस पेड़ की छांव में बैठकर गुज़ारे थे।
हमारी पहली मुलाकात उस पेड़ से हुई।
मन बड़ा आनंदित ,प्रफुल्लित हो उठा था।क्योंकि हम ऐसे जगह रहने आये थे जहां वैसा माहौल मिला जैसा बच्चे कल्पना करते हैं।
पेड़ के नीचे हमारा पुष्तैनी मंदिर काफी बड़ा सा आंगन जैसा फिर मातारानी का भव्य मंदिर और ये सब मैन रोड के किनारे है आज भी।।। सड़क के उस पार मेरे पापा की होटल.. बस फिर क्या नया माहौल ,और नए दोस्त बन गए जो आज भी हैं पर साथ नही है।
तो ये उन दिनों की बात है जब हम दोस्त एक दूसरे के बिना एक दिन भी नहीं गुज़ारते थे।जैसे ही वक़्त मिलता उस पेड़ के नीचे खेलते कूदते उसकी हवा में मन बड़ा खुश रहता था।
चिंता,फ़िक्र इन सबका कोई नाता ही न था।
बचपन गुज़र उसकी छांव में,फिर जब थोड़ा आगे बढ़े ज़िंदगी के उस मोड़ पे जहां पर अक्सर लोग कई घंटों निहारते हैं लोग उन पेड़ो को, जिनकी आड़ में किसी का इंतज़ार शामिल होता है।कई बार पूरा पूरा दिन निकाल लिया करते थे उस पेड़ से बातें करते हुए ।उस पेड़ ने बचपन सम्भाला अब वो हमारी अंगड़ाइयाँ भी देख पा रहा था।इंतज़ार से जब बात शुरू हुई वो नया नया पहला पहला सा प्यार उफ़ पहला नशा पहला ख़ुमार ।पेड़ तो पहले ही सब देख चुका था उसके लिए कुछ नया न था।कितनों को जवानी में बर्बाद होता देख फिर उन्हीं की बारात के मज़े भी लिया है।और हम ख़ामख़ा सोच रहे थे जैसे हम दुनिया में पहले सितारे हैं जो प्यार में गिरे हैं।फिर क्या गिरे भी,पेड़ ने देखा भी समझा भी मानो समझाया भी. जैसे वो केह रहा हो कि बेटा ,जैसे पतछड़ के बाद सावन आता है मुझमें फिर नई पत्तियों का जन्म होता है।जब पेड़ होकर मैं भी बिखर के जीने लगता हूँ लोगों को बेमतलब सा प्यार लुटाता हूँ।तो फिर तुम इन्सान होकर ऐसे कैसे हार मान सकते हो।उठो ज़िंदगी से हताश होकर कभी न जीना, बहुत क़ीमती है ये जीवन यूं बर्बाद न कर।
यकीन मानो उस वक़्त इंतज़ार, खुशी,टूटे हुए दिल के हालात सब देखे उस पेड़ ने।फिर उसने मेरे हौसले भी देखे।न सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए मैं खुद के लिए जीना सीख गई।फिर पढ़ने लिखने वाली उम्र का भरपूर इस्तेमाल किया पढ़ाई पूरी होते होते शादी की उम्र हो चली पर अब उस पेड़ के पास वाले घर से थोड़ी दूर वाले घर मे हम रहने चले गए।वो आखिरी दिन जब उस घर से पलायन हो रहा था तब पेड़ को देख कर ऐसा लगा जैसे "सारे दोस्त यहाँ वहाँ चले गए...
चलो तो फिर शुरुआत करते हैं मेरे बचपन से लेकर अब तक के सफ़र का पंचनामा.
जी हाँ ,एक पेड़ है मैंने उसे बचपन से लेकर अब तक देखती आ रही हूं।पर गौरतलब है वह पेड़ मेरे परिवार की अब चौथी पीढ़ी को देखने का सौभग्य पा रहा है।
कितना अजीब है न,,,ये वही पेड़ है।जब मै पांच साल की थी और पहली बार मैंने उस पेड़ को देखा।
पीपल का हर भरा, गठीला सूंदर और भव्य आकृति लिए बड़ा ही मनमोहक लगता था ,उसकी छांव में न जाने कितनों को बचपन ,जवानी और बुढापा गुज़रा है।कितनो के बचपन के खेलकूद,जवानी की अटखेलियां से लेकर बुढ़ापे और यहाँ तक उस पेड़ ने कितनों को अंत समय में विदा भी किया है।
ये तो वो लोग थे जिन्होंने उस पेड़ की छांव में अपना जीवन गुज़ारा था।
इसमें कुछ वो लोग भी शामिल हैं ,जो अजनबी,परदेसी हुआ करते थे,अक्सर बस की राह निहारते हुए कितने घंटे इस पेड़ की छांव में बैठकर गुज़ारे थे।
हमारी पहली मुलाकात उस पेड़ से हुई।
मन बड़ा आनंदित ,प्रफुल्लित हो उठा था।क्योंकि हम ऐसे जगह रहने आये थे जहां वैसा माहौल मिला जैसा बच्चे कल्पना करते हैं।
पेड़ के नीचे हमारा पुष्तैनी मंदिर काफी बड़ा सा आंगन जैसा फिर मातारानी का भव्य मंदिर और ये सब मैन रोड के किनारे है आज भी।।। सड़क के उस पार मेरे पापा की होटल.. बस फिर क्या नया माहौल ,और नए दोस्त बन गए जो आज भी हैं पर साथ नही है।
तो ये उन दिनों की बात है जब हम दोस्त एक दूसरे के बिना एक दिन भी नहीं गुज़ारते थे।जैसे ही वक़्त मिलता उस पेड़ के नीचे खेलते कूदते उसकी हवा में मन बड़ा खुश रहता था।
चिंता,फ़िक्र इन सबका कोई नाता ही न था।
बचपन गुज़र उसकी छांव में,फिर जब थोड़ा आगे बढ़े ज़िंदगी के उस मोड़ पे जहां पर अक्सर लोग कई घंटों निहारते हैं लोग उन पेड़ो को, जिनकी आड़ में किसी का इंतज़ार शामिल होता है।कई बार पूरा पूरा दिन निकाल लिया करते थे उस पेड़ से बातें करते हुए ।उस पेड़ ने बचपन सम्भाला अब वो हमारी अंगड़ाइयाँ भी देख पा रहा था।इंतज़ार से जब बात शुरू हुई वो नया नया पहला पहला सा प्यार उफ़ पहला नशा पहला ख़ुमार ।पेड़ तो पहले ही सब देख चुका था उसके लिए कुछ नया न था।कितनों को जवानी में बर्बाद होता देख फिर उन्हीं की बारात के मज़े भी लिया है।और हम ख़ामख़ा सोच रहे थे जैसे हम दुनिया में पहले सितारे हैं जो प्यार में गिरे हैं।फिर क्या गिरे भी,पेड़ ने देखा भी समझा भी मानो समझाया भी. जैसे वो केह रहा हो कि बेटा ,जैसे पतछड़ के बाद सावन आता है मुझमें फिर नई पत्तियों का जन्म होता है।जब पेड़ होकर मैं भी बिखर के जीने लगता हूँ लोगों को बेमतलब सा प्यार लुटाता हूँ।तो फिर तुम इन्सान होकर ऐसे कैसे हार मान सकते हो।उठो ज़िंदगी से हताश होकर कभी न जीना, बहुत क़ीमती है ये जीवन यूं बर्बाद न कर।
यकीन मानो उस वक़्त इंतज़ार, खुशी,टूटे हुए दिल के हालात सब देखे उस पेड़ ने।फिर उसने मेरे हौसले भी देखे।न सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए मैं खुद के लिए जीना सीख गई।फिर पढ़ने लिखने वाली उम्र का भरपूर इस्तेमाल किया पढ़ाई पूरी होते होते शादी की उम्र हो चली पर अब उस पेड़ के पास वाले घर से थोड़ी दूर वाले घर मे हम रहने चले गए।वो आखिरी दिन जब उस घर से पलायन हो रहा था तब पेड़ को देख कर ऐसा लगा जैसे "सारे दोस्त यहाँ वहाँ चले गए...