...

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बिखर
#बिखर
निखर जाएगा समझौता कर ले,
बिखर जायेगा ना हठ कर बे;

शीशा कहा टिकता गिर कर रे,
हो जाते हैं उसके कई टुकड़े।

चंद मिशाल क्या दी तुम्हारी,
खुद को फरिश्ता कह दिया तुमने।

माना की चर्चे हुश्न के हैं शहर में,
मगर अब देखना छोड़ दिया हमने।

तुम जो खुशी का समंदर बक्शो तो भी,
ये कश्ती अब नहीं आयेगा तेरे जद में ।

तुम तलबगार दौलत की थी तो सिक्के खाओ,
मक्कारों को अब रोटी देनी बंद कर दी हमने ।

अब मैं अपना घर रौशनी से नहीं भरता,
जला के मन मेरा खाक कर दिया सबने।

अरुण
© अरुण कुमार शुक्ल