...

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दास्तान-ए-कलम
गुज़श्ता दशकों में आदमी ने कई कमाल किये हैं
नाचते गाते सब हाल-ए-दिल भी बेहाल किये हैं
देख इन्सां तेरी चालाकी ने कैसे तन्हा कर दिया
सदाचार और विचारों पर अनायास हमला कर दिया
कोई साथ न होगा, साँझ ढले जब राही लौटता होगा
फिर से वही जलता दिल, फिर से खून खौलता होगा
इस हाल-ए-बेबसी में मुसाफिर मारे-मारे फिरता है
ज्यों अपमानित शत्रु रण में हारे-हारे फिरता है

दलाल मिलते हर मोड़ पर, मौका-ए-नफा भुनाने को
मिलता न पर खुदा का बंदा, दिल का हाल सुनाने को
भली रूह समझती है, जो भी वालदेन का क़र्ज़ है
ग़म छुपा उन्हें खुशी देना ही अब इसका फ़र्ज़ है

निगाहें मचलती है, दिशाओं से लड़ती भी हैं
जाने किसकी तलाश है, सहसा अकड़ती भी हैं
स्याह रातों के अँधेरे कमरों में छिप बहती भी हैं...