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समय की धारा

© Nand Gopal Agnihotri
#नमन मंच
#ता २३/१/२०२५
#समय की धारा
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मोहब्बत का जग ये दीवाना हुआ,
प्रेम को न कहीं भी ठिकाना मिला।
दाने बिखरे जमीं पर अनेकों मगर,
जाल ऊपर से था दाना ना मिला।
फूल के धोखे में बीज कांटे मिले,
चुभे कांटे माली सिसकता मिला।...