इंतजार
तरसती हुई नजरें हैं क्यूँकि कुछ ख़्वाबों को अपने दिल में बुन बैठी हैं और इंतजार में सूखी जा रही हैं, इतना ही नहीं उनसे अपनी धड़कनों को जोड़ लिया है.
क्या वो ख़ूबसूरत सुहानी सुबह होगी जहाँ तुम और हम होंगे,वो ख़्वाब होंगे जो आज हक़ीक़त में बहुत महँगे लगते हैं और हम उसी गरीब की तरह हैं जो महँगे शोरूम के बाहर शीशे से हसरतों के साथ अंदर झाँकता रहता है.
तुम अजनबी थे, धीरे धीरे अपने हुए फिर धीरे धीरे अजनबी होते गये...क्या ख़ता थी जिसके बिना पर अजनबी होने का फ़ैसला अकेले कर लिया.
क्यूँ अचानक से सारी कोशिशें सुलगने लगी.. सारी मेहनत बर्बाद होकर बहने लगी. हर लम्हा,हर पल तुम्हारा ही खयाल और तुम... सुनो कोई तकल्लुफ नहीं करना एक बार सीधे कह देना तुम्हारा साथ नहीं चाहिए. तुम्हें हक है अपनी पसंद से जीने का...
मुझे किसी ने बताया ख़ुदा है मेरे साथ
मैं क्या बताऊँ उसे और क्या है मेरे साथ
तुझे यक़ीं नहीं आएगा पर हक़ीक़त है
ये तू नहीं है कोई दूसरा है मेरे साथ
ये मुश्किलात भी अब मेरे साथ रहती हैं
ये जानती हैं कि मुश्किल-कुशा है मेरे साथ
मैं क्या बताऊँ तुझे याद क्या दिलाऊँ तुझे
तू जानता है जो तू ने किया है मेरे साथ
अगर वफ़ा को बताऊँ वफ़ा भी चीख़ पड़े
वफ़ा के नाम पे जो कुछ हुआ है मेरे साथ
सितम तो ये है कि मैं ने उसे भी छोड़ दिया
जो सब को छोड़ के तन्हा खड़ा है मेरे साथ
किसी से कोई शिकायत नहीं है चले जाओ
जो होना चाहिए वो हो रहा है मेरे साथ
लगे है आसमाँ जैसा मगर आसमाँ नहीं है
नज़र आता है अक़्सर जो होता नहीं है
तुम अपने अक्स में क्या देखते हो बताओ
तुम्हारा अक्स भी तो देखो तुम सा नहीं है
मिले जब तुम तो ये एहसास जाग उठा था
अब आगे का कोई भी सफ़र तन्हा नहीं है
बहुत सोचा है समझा है हमने ज़िंदगी पर
मगर लगता है अब जैसे कुछ सोचा नहीं है
यही जाना है हमने कि कुछ नहीं जाना
यही समझा है हमने कुछ समझा नहीं है
यक़ीं का दाएरा देखा है बता यहाँ किसने
गुमाँ के दाएरे में लिख दो क्या क्या नहीं है
यहाँ तो सिलसिले ही सिलसिले हैं इश्क के
कोई भी वाक़िआ अकेला सा तन्हा नहीं है
बंधे हैं काएनाती बंधनों में हम सभी यहाँ
कोई बंधन किसी को मगर दिखता नहीं है
हो किस निस्बत से तुम यहाँ हमारे पास
मिले हो जो नसीब से तो तुम्हें खोना नहीं है
NOOR EY ISHAL
© All Rights Reserved
क्या वो ख़ूबसूरत सुहानी सुबह होगी जहाँ तुम और हम होंगे,वो ख़्वाब होंगे जो आज हक़ीक़त में बहुत महँगे लगते हैं और हम उसी गरीब की तरह हैं जो महँगे शोरूम के बाहर शीशे से हसरतों के साथ अंदर झाँकता रहता है.
तुम अजनबी थे, धीरे धीरे अपने हुए फिर धीरे धीरे अजनबी होते गये...क्या ख़ता थी जिसके बिना पर अजनबी होने का फ़ैसला अकेले कर लिया.
क्यूँ अचानक से सारी कोशिशें सुलगने लगी.. सारी मेहनत बर्बाद होकर बहने लगी. हर लम्हा,हर पल तुम्हारा ही खयाल और तुम... सुनो कोई तकल्लुफ नहीं करना एक बार सीधे कह देना तुम्हारा साथ नहीं चाहिए. तुम्हें हक है अपनी पसंद से जीने का...
मुझे किसी ने बताया ख़ुदा है मेरे साथ
मैं क्या बताऊँ उसे और क्या है मेरे साथ
तुझे यक़ीं नहीं आएगा पर हक़ीक़त है
ये तू नहीं है कोई दूसरा है मेरे साथ
ये मुश्किलात भी अब मेरे साथ रहती हैं
ये जानती हैं कि मुश्किल-कुशा है मेरे साथ
मैं क्या बताऊँ तुझे याद क्या दिलाऊँ तुझे
तू जानता है जो तू ने किया है मेरे साथ
अगर वफ़ा को बताऊँ वफ़ा भी चीख़ पड़े
वफ़ा के नाम पे जो कुछ हुआ है मेरे साथ
सितम तो ये है कि मैं ने उसे भी छोड़ दिया
जो सब को छोड़ के तन्हा खड़ा है मेरे साथ
किसी से कोई शिकायत नहीं है चले जाओ
जो होना चाहिए वो हो रहा है मेरे साथ
लगे है आसमाँ जैसा मगर आसमाँ नहीं है
नज़र आता है अक़्सर जो होता नहीं है
तुम अपने अक्स में क्या देखते हो बताओ
तुम्हारा अक्स भी तो देखो तुम सा नहीं है
मिले जब तुम तो ये एहसास जाग उठा था
अब आगे का कोई भी सफ़र तन्हा नहीं है
बहुत सोचा है समझा है हमने ज़िंदगी पर
मगर लगता है अब जैसे कुछ सोचा नहीं है
यही जाना है हमने कि कुछ नहीं जाना
यही समझा है हमने कुछ समझा नहीं है
यक़ीं का दाएरा देखा है बता यहाँ किसने
गुमाँ के दाएरे में लिख दो क्या क्या नहीं है
यहाँ तो सिलसिले ही सिलसिले हैं इश्क के
कोई भी वाक़िआ अकेला सा तन्हा नहीं है
बंधे हैं काएनाती बंधनों में हम सभी यहाँ
कोई बंधन किसी को मगर दिखता नहीं है
हो किस निस्बत से तुम यहाँ हमारे पास
मिले हो जो नसीब से तो तुम्हें खोना नहीं है
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