...

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मैं, शादी और सपने
मेरे दिल में कुछ तस्वीरें हैं,
कुछ रौशनी सी चमकती,

जैसे अभी ही बीता हो पल,
माँ पिताजी के प्यार की और भाई से तकरार की.

जैसे अभी ही हुई हो विदाई,
वो आखों में सपनों की चमक ,
और हो गई मैं अपनों से पराई.

दो घर हैं पर हक शायद अब कहीं नहीं,
मैं तो वही हूँ पर पहले जैसी रही नहीं.

अपने तो सभी हैं,
पर प्यार और विश्वास में कुछ कमी है.

शायद भ्रम हो मेरा, पर बोला भी तो नहीं जाता,
और बिन बोले समझ ले कोई
अभी नहीं हैं ऐसा नाता.

विश्वास और हक शायद आएगा,
पर तब तक ये मन बहुत तड़पाएगा.

जीवन देगें हम इस रिश्ते को,
पर जाने कब ये रिश्ता बदल जाएगा.

मोड़ आया रिश्ते में तो हमने फिर सपने देखे,
पर मोड़ के उस पार क्या फिर अपने देखे...

जिंदगी बीत जाएगी इसी उधेड़बुन में,
कि शादी से पहले जो सपने देखे,
क्या वो सच्चे या फिर झूठे देखे.