नक़ाब
वो देखे बस इक नज़र मुझे
पर कमबख्त नज़र मे दिखता क्या है
चेहरे तो ज़माने मे सारे नकाब है
पर यहाँ नकाब बिन बिकता क्या है
उदासी की लहर पलकों से दबाये है
गम के तूफानों से यूँ बेवजह लडता क्या है
वो लहरों जैसी मेरी पीठ सहलाती है
मेरा बदन यूँ रेत सा बिखरता क्या है
#lifefacts
© Mystic Monk