...

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चिंतन।
चित्त में ये उतावलापन क्यों है
इतना चंचल ये मन क्यों है।
क्यो ना धरता है ये धीरज
इसमें इतना खोखलापन क्यों है।
क्या मनुष्य जिसमें ना संयम
ये तो निरा उच्चश्रंखलपन है।
ये दुनियावी संसारी बातें
क्यों ना इसमें वैराग्य पन है।
जिसमें आत्मोन्नति नहीं तो
ऐसा जीवन भी क्या जीवन है।
चित्त में ये ...

© Ved वेद