...

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एक भयंकर और खुबसूरत एहसास.
विश्व_कविता_दिवस
हम वहा थे जहाँ
बादलों का समूह मुझसे काफी नीचे था
नीचे खुबसूरत सी घाटी बादलों से ढका था
पता नही क्यू..
आज मै खुद को
बहुत बडा समझ रहा था क्यू न समझता
जिन बादलों को
बचपन मे पकडने
उसके संग खेलने की जीद
अम्मा से कई बार करता था
आज मै उपर था
और वो मेरे बहुत नीचे
पर मेरा मन उससे खेलने की नही हुआ
क्यूँ नही हुआ...??
आप समझते होगे कि
अब मै बच्चा नही रहा इसलिए...
ऐसी कोई बात नही थी
मै न सही पर मेरा दिल
आज भी बच्चा है
मासूम है और
है शरारतों से भरा हुआ..
आपको बताउ...???
मानव मन सदा उसके लिए ही
लालायित रहता है जो
अपराप्य होता है
आज मै बादलों को तुच्छ समझ रहा था
मन अपूर हर्ष से भर रहा था
नीचे झांकने पर दूर दूर तक
सुंदर सुंदर फूलों से उद्यान भरे थे
बहुत से ऐसे फूल देखे जो
आज तक कही न देखा था
निगाहे प्रफुल्लित हो फैल रही थी
और मौसम वहाँ का याद करूँ तो
आज भी कंपकपी सी होती है
जब तक घाटियों को सुनहरी धूप की...