...

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क्या वह समय था .....
क्या वह समय था जब हम सब साथ में रहते थे
जब सुबह सबेरे बाबा उठ गाय को चारा देते थे
दादी संग बैठ रसोई में गुड़ और कतली खातेथे

एक साइकिल के पहिए के पीछे
दौड़ लगा हम दोपहर पूरी बिताते थे

और होते ही शाम घरों की छत पे
झट पट चढ़ जाते थे

फिर छत को दे छीटें पानी के
हम बिस्तर अपना वहीं जमाते थे

और अपनी इन नासमझ आंखों से
घंटों तारे निहारते थे

फिर सुन के कहानी भूतों वाली
छुप चादर में सो जाते थे

हम यूं ही खुले आसमान के नीचे
पूरी रात बिताते थे

अब ना ही रहा वो समय
और ना ही है वो मेल

दुनिया सिमट गई मोबाइल में
खेल रहे सब नफरत का खेल

घर और रिश्ते जैसे हो गए हों
कोई पुरानी जेल !!



© Rekha pal