12 views
क्या वह समय था .....
क्या वह समय था जब हम सब साथ में रहते थे
जब सुबह सबेरे बाबा उठ गाय को चारा देते थे
दादी संग बैठ रसोई में गुड़ और कतली खातेथे
एक साइकिल के पहिए के पीछे
दौड़ लगा हम दोपहर पूरी बिताते थे
और होते ही शाम घरों की छत पे
झट पट चढ़ जाते थे
फिर छत को दे छीटें पानी के
हम बिस्तर अपना वहीं जमाते थे
और अपनी इन नासमझ आंखों से
घंटों तारे निहारते थे
फिर सुन के कहानी भूतों वाली
छुप चादर में सो जाते थे
हम यूं ही खुले आसमान के नीचे
पूरी रात बिताते थे
अब ना ही रहा वो समय
और ना ही है वो मेल
दुनिया सिमट गई मोबाइल में
खेल रहे सब नफरत का खेल
घर और रिश्ते जैसे हो गए हों
कोई पुरानी जेल !!
© Rekha pal
जब सुबह सबेरे बाबा उठ गाय को चारा देते थे
दादी संग बैठ रसोई में गुड़ और कतली खातेथे
एक साइकिल के पहिए के पीछे
दौड़ लगा हम दोपहर पूरी बिताते थे
और होते ही शाम घरों की छत पे
झट पट चढ़ जाते थे
फिर छत को दे छीटें पानी के
हम बिस्तर अपना वहीं जमाते थे
और अपनी इन नासमझ आंखों से
घंटों तारे निहारते थे
फिर सुन के कहानी भूतों वाली
छुप चादर में सो जाते थे
हम यूं ही खुले आसमान के नीचे
पूरी रात बिताते थे
अब ना ही रहा वो समय
और ना ही है वो मेल
दुनिया सिमट गई मोबाइल में
खेल रहे सब नफरत का खेल
घर और रिश्ते जैसे हो गए हों
कोई पुरानी जेल !!
© Rekha pal
Related Stories
21 Likes
8
Comments
21 Likes
8
Comments