...

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फ़रियाद
अब के आओ तो मेरे रंग में ढलना होगा
मेरी ग़ज़लों की नुमाइश पे बहलना होगा
या'नी बिन सोचे किसी राह पे चलना होगा
या के जिस तर्ह में चाहूँगा बदलना होगा
मानता हूँ की तुम्हें कर चुका हूँ मैं आजाद
हर हसीं लम्स को हम-रक़्स किया है बर्बाद
हाँ मगर एक सहूलत तो अता हो मुझ पर
गर कोई मेरा भी अहसान बचा हो तुझ पर
अब न ये दिल तेरी रहमत से उजाला पाए
तुझको हर गोशा-ए-हस्ती से निकाला जाए
मेरे अंदर भी कोई दूसरी ख़्वाहिश आए
मेरा दिल तेरे सिवा और कोई बहकाए
या के तुम आओ मेरे ज़ेह्न में फिर से इक बार
फिर से इस रूह के साये में उजाला भरने
क़ैद से अपनी मेरे ज़िस्म को फ़ारिग़ करने
हाथ को थाम मेरे साथ में जीने-मरने
और ना आओ तो पैग़ाम भी न पहुँचाना
वाकई ख़त को मेरे नाम भी न पहुँचाना
ग़ुम रहेगा मेरी उम्मीद में क़ासिद तेरा
चश्म-ए-पुर-आब में ख़त पढ़ता है आशिक़ तेरा !!


हम-रक़्स= Dancing partner
गोशा-ए-हस्ती= corners of existence
चश्म-ए-पुर-आब= tearful eyes
© हर्ष