कुछ तो लिखना था
उस रोज़ जब उठायी थी कलम
कुछ तो लिखना था
जरूरी था कि तूफान भीतर दब ना जाए
किनारों से गुज़ार कर सब उड़ेल देना था
कुछ तो लिखना था
बहुत भारी था पत्थर जो दिल पर गिरा था
भारी मन की भारी बातों का भार
जैसे घोंट रहा था दम शब्दों का
...
कुछ तो लिखना था
जरूरी था कि तूफान भीतर दब ना जाए
किनारों से गुज़ार कर सब उड़ेल देना था
कुछ तो लिखना था
बहुत भारी था पत्थर जो दिल पर गिरा था
भारी मन की भारी बातों का भार
जैसे घोंट रहा था दम शब्दों का
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