भक्त और भगवान
🙏प्रणाम प्रभूजी...,
कर्मों से अधिक,मोहभंग कौन कर सकता हैं...
एक - एक कर्म में, तपस्या की भाँति, जग बिसराना...
मोह-नाते छोड़कर, अभीष्ट कर्म में सिमट जाना..
हाँ...वो,उसका जन्म से ...
अप्रकट से प्रकट रूप में आना..
अतिसूक्ष्म रूप से विस्तार पाना...
शून्य भावों से, अनगिनत भावों के सागर तक ..
कर्म का दामन पकड़े,
जाने अनजाने जीने की चाह लिये...
फ़िर से आशाओं...
कर्मों से अधिक,मोहभंग कौन कर सकता हैं...
एक - एक कर्म में, तपस्या की भाँति, जग बिसराना...
मोह-नाते छोड़कर, अभीष्ट कर्म में सिमट जाना..
हाँ...वो,उसका जन्म से ...
अप्रकट से प्रकट रूप में आना..
अतिसूक्ष्म रूप से विस्तार पाना...
शून्य भावों से, अनगिनत भावों के सागर तक ..
कर्म का दामन पकड़े,
जाने अनजाने जीने की चाह लिये...
फ़िर से आशाओं...