...

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भक्त और भगवान
🙏प्रणाम प्रभूजी...,
कर्मों से अधिक,मोहभंग कौन कर सकता हैं...
एक - एक कर्म में, तपस्या की भाँति, जग बिसराना...
मोह-नाते छोड़कर, अभीष्ट कर्म में सिमट जाना..
हाँ...वो,उसका जन्म से ...
अप्रकट से प्रकट रूप में आना..
अतिसूक्ष्म रूप से विस्तार पाना...
शून्य भावों से, अनगिनत भावों के सागर तक ..
कर्म का दामन पकड़े,
जाने अनजाने जीने की चाह लिये...
फ़िर से आशाओं का.., झोला उठाकर,
अपने सफ़र पर, चल निकला...
फ़िर एक दिन.., उस सफ़र का थम जाना...
एकांत मृत्यु शय्या पर न,चाहते हुए भी,
मरने का कर्म निभाना...
ओह!प्रभूजी...
कर्मों का ये लोक,
कर्मों के वशीभूत... आपकी माया...
कर्मों से फलीभूत....ये वैराग्य ...
कर्मों से रहित यहाँ, कुछ भी नहीं...

प्रभूजी= कर्म "परिस्थितियों" के अधीन हैं,
पारिस्थितियाँ "समय" के अधीन हैं,
समय म"ेरे" अधीन हैं..., और मैं.. "भक्त" के अधीन हूँ।
ऐसी "चेतनायुक्त रचना" के लिए और "ममतामयी उत्तर" के लिये आभारप्रभुजी।🙏🐚🌍🇮🇳
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© nikita sain