...

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फिलहाल:किस्सा
एक नया दौर या वही पुराना किस्सा होगा।
शायद,मेरा फैसला मेरा था या किसी ओर का।
वही समझ का समझदार बनना होगा,
या फिर हमे ही अश्रु का श्रोता बनना पडेगा।
बड़ी मुश्किल से सम्भाला या अभी भी डगमगा
रहे रास्ते।
चलते हैं,फिर भी याद दिला रहे हर वास्ते।
क्या कर जाऊं हौंसला अपने नाम?
या एक प्रेम की यातना फिर एक बार बनू।
सताने का पग हम भी बढाये,
या दफन की माटी हाथ लिये जाये।
रब की पुकार को सुनाई को सुनवाई का वायदा कहे।
या उनकी रह के मत को स्वीकार किये चले जाय।
अच्छा होगा आगे या वही मायने मिलेंगे।
इस बार हमने कल को होने वाला हादसा अपने नाम ना दिया।
फिर भी सिलाह ये मिला हमें।
क्या करे ,छ मजबूरी का मन में पाँव गड जाते हैं।
रब के हवाले हर बार हम अपने आप को किये जाते हैं।
बाद उन अंश्रु की मरहम की दुआ भी उन्ही से माँगते हैं।
या यूँ कहे इन सिलाहो से रिहा होने की मन्नत करते रह्ते हैं।
© 🍁frame of mìnd🍁