...

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रूखसत
आज फ़िर सुबह,
होने को है,
चांद और चांदनी,
दोनों की रूखसत है,
न नींद, न ख़्वाब कोई,
इन आंखों को,
क्यों इतनी फ़ुर्सत है।
- राजेश वर्मा
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