अकेला पुरुष
औरते पुरुषो को कहां समझती
हर बार अपनी रोना रो कर
उसको ना जाने क्या क्या कह जाती है।
हर रिश्ते सिर्फ स्त्री ही तो नहीं निभाती
पुरुष भी निभाता है
बेटे के फीस की खातिर
बरसो की पुरानी घड़ी पहनता है
बेटी की बिदाई में छुप छुप कर रोता है
बिना कहे,बिना बताए
हर रोज बैल जैसे बोझ उठाए रहता है
फिर भी किसी से कोई शिकायत नहीं
हर परिस्थिति में हर शाम
मुस्कुराता हुआ घर लौटता है
कही घर में मुझे परेशान देखकर
लोग घबरा न जाएं
इसकी फिक्र तो सिर्फ मर्द करता है।
स्त्री के प्रेम में
हर बार वह हर रिश्ता निभाएं है।
तभी तो पुरुष पूर्ण है।
#अमृता
© All Rights Reserved
हर बार अपनी रोना रो कर
उसको ना जाने क्या क्या कह जाती है।
हर रिश्ते सिर्फ स्त्री ही तो नहीं निभाती
पुरुष भी निभाता है
बेटे के फीस की खातिर
बरसो की पुरानी घड़ी पहनता है
बेटी की बिदाई में छुप छुप कर रोता है
बिना कहे,बिना बताए
हर रोज बैल जैसे बोझ उठाए रहता है
फिर भी किसी से कोई शिकायत नहीं
हर परिस्थिति में हर शाम
मुस्कुराता हुआ घर लौटता है
कही घर में मुझे परेशान देखकर
लोग घबरा न जाएं
इसकी फिक्र तो सिर्फ मर्द करता है।
स्त्री के प्रेम में
हर बार वह हर रिश्ता निभाएं है।
तभी तो पुरुष पूर्ण है।
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