...

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तो बस आप समझ लीजिए..
सब हलकान हैं,
इधर भी त्राहिमाम है,
उधर भी त्राहिमाम है।

उधर वाला सोचता है,
यह तो बस इनकी साज़िश है।
अरे नहीं भाई, इधर भी,
षड़यंत्र के शिकार हैं।

जिन भगवानों को हम पंच वर्षीय संकीर्ण बुद्धि से अपनाते हैं,
तो बस आप समझ लीजिए..
उनके ही श्राप से आपका विलाप है।

धीरे धीरे थकने लगे हैं इधर हम भी,
करें तो करें क्या, इंसान उधर भी है और इधर भी।

यह कलयुग की उदासीनता देखकर जी घबराता है,
सामने वाला सोचता है इसमे मेरा क्या जाता है।

तो बस आप समझ लीजिए...
अब यही बाकी है की दोनों तरफ मशीन बन जाए,
चित्त वृत्ति से बिल्कुल अलग।
ना माहौल ग़मगीन होगा,
ना कोई उसमे विलीन होगा।

-डॉ अभिषेक

© Dr.APS