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बच्चपन
बच्चपन

वो दिन भी क्या दिन थे दोस्तो ,उन दिनो का अपना अलग ही फसाना था....
ना हसीं होंटो से छूट ती और ना बेवजह आंसुओ को बहाना था....
ना होती थी किसी से जलन किसी बात की, लड़ना जगड़ना और रूठ कर पल भर में मान जाना ना था।
खूबसूरत था वो बचपन और यादगार हमारे बचपन का ज़माना था।

ना होती कमाने की चिंता कभी, बस खेलने कूदने में मन था और पढ़ाई से दुश्मनी का नाता था....
कार्टून से फुरसत काहा मिलती थी हमें, हमें तो सिर्फ पिकनिक मनाने जाना था....
वो लुका चूपी खेलना और फैंसी ड्रेस में तो हमे बस जोकर बनकर ही जाना था।
मासूम था वो बचपन और वो मौसम पुराना था।

स्कूल से जैसे आते ही हमें...