...

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कभी जो रवानी थे..
कभी जो रवानी थे सांसों की
जाने आज क्यूँ नहीं..
वो अनचाहा सावन थे आँखों के
जाने आज क्यूँ नही

दरमियान-ऐ-दिल
धीरे धीरे बढ़ रही हैं दूरियां
कुछ तो हालातों का दोष
कुछ अपनी भी मजबूरियां

आज दिल ने किया जो हिसाब कि
क्या खोया क्या पाया है
रूह से आई आवाज
पगले, वक़्त की कसौटी पर
कौन खरा उतर पाया है

मृगतृष्णा सी प्यास का
अंत भला क्या होय..
जैसे जल बिन मीन का
सगा भया ना कोय..
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