...

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प्रेम
सत्य शाश्वत सरल
भाव इसके तरल
नव नूतन द्वेग
बहता जाए नद्म वेग

विलग है इसकी भाव प्रबलता
हृदय में रहती सार्थकता
महके तन मन, महके जीवन
मनभावन चंदन मचलता

दिव्य है द्रवित है
आत्मा का है रंजन
अहम से परे जन्मा
स्वयं का है विसर्जन

© वसुधा गोयल