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साथ होकर भी
साथ हो कर भी दूर खड़े नज़र आते हैं
तन से भले ही साथ हो,
मन के फासले बढ़ जाते हैं
फिर पुराने दिनों के धुंधले से अक्स सामने आते हैं
और मीठी यादों की धूप से शिकवों के बादल छँट जाते हैं
फिर एक दौर यूँ आता है
तन से भले ही साथ न हों
मन के पक्के से धागे जुड़ जाते हैं...
© Garg sahiba
तन से भले ही साथ हो,
मन के फासले बढ़ जाते हैं
फिर पुराने दिनों के धुंधले से अक्स सामने आते हैं
और मीठी यादों की धूप से शिकवों के बादल छँट जाते हैं
फिर एक दौर यूँ आता है
तन से भले ही साथ न हों
मन के पक्के से धागे जुड़ जाते हैं...
© Garg sahiba
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