सूर्य पुत्र कर्ण
खुद को सर्वश्रेष्ठ दनुर्धर साबित कर,
सन्मान की अपेक्षा की थी उसने !
अंग प्रदेश का राजा बनकर,
जरासंध को धुल चटाई थी उसने !
मित्र का हर परिस्थीती मे साथ देकर,
उसका हर आदेश अपणा कर्तव्य माना था उसने !
भगवान इंद्र को कवच कुंडल दान कर,
मृत्यू को हसकर स्विकार किया था उसने !
दुःख...
सन्मान की अपेक्षा की थी उसने !
अंग प्रदेश का राजा बनकर,
जरासंध को धुल चटाई थी उसने !
मित्र का हर परिस्थीती मे साथ देकर,
उसका हर आदेश अपणा कर्तव्य माना था उसने !
भगवान इंद्र को कवच कुंडल दान कर,
मृत्यू को हसकर स्विकार किया था उसने !
दुःख...