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तब बदलना पड़ता है खुद को ।
बचपन में मनमर्जी कहा किया करते थे ,
जो बोलते थे बस वही किया करते थे ,
थोड़े से सयाने हुए फिर समझदार बनते है ,
तब बदलना पड़ता है खुद को ।
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मा की गोद से school की classroom तक ,
उनके हाथ के खाने से खुद खाना खाने तक ,
वो पढ़ाती थी तब से independent बनने पर,
तब बदलना पड़ता है खुद को ।
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School से college तक ,
खुद के घर से बिल्कुल अनजान शहर तक ,
परिवार के साथ से अकेले 1 रूम तक ,
भाई बहनों से बस अपने दोस्तो तक ,
तब बदलना पड़ता है खुद को ।
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College से सगाई होने तक ,
सबको जानने तक समझने तक ,
खुद की खुद खुशियों को अनदेखा कर सबकी खुशियों तक,
अपने से पहले अपनो के बारे में सोचने तक ,
तब बदलना पड़ता है खुद को ।
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फिर सगाई से शादी तक ,
1 परिवार से दूसरे परिवार तक ,
मनमर्जिया से कम बोलने तक ,
अपनी सारी हदो को छोड़ सिर्फ कुछ हद तक ,
तब बदलना पड़ता है खुद को ।
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हर बात बार बार की जगह सिर्फ 1 बार बोलने तक ,
कुछ मांगने से पहले 100 बार सोचने तक ,
मन्न ना लगे तब भी face पर हमेशा smile रखने तक ,
अपनी इच्छा चोद सबकी इच्छा मानने तक ,
तब बदलना पड़ता है खुद को ।
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मा पापा को छोड़ किसी और के घर को अपना मानने तक ,
आधी उम्र बिताने के बाद वापस शुरू से ज़िन्दगी जीने तक ,
सब कुछ क्या से क्या बदलने तक ,
कुछ करने से पहले हमेशा पूछ कर करने तक ,
तब बदलना पड़ता है खुद को ।
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अपने घर की बेटी होने से किसी की बहू बनने तक ,
बेफिक्र ज़िन्दगी से फिक्र भारी ज़िन्दगी तक ,
बिंदास रहने से कुछ limits तक ,
बच्ची हूं अभी फिर मा बनने तक ,
फिर वापस वहीं सब रिपीट होने तक ,
तब बदलना पड़ता है खुद को ।
© pooja jhanwar