सावन
झम-झम बरसे बादल पागल,
घुमर-घुमर के आये सावन।
पीहू बोले, नाचे मोर
नाचे मन इस उपवन।
प्यार के मौसम में,
बहते पवन के मद्धम तरंग में,
प्रकृति करे सोलह श्रृंगार,
मानो, आया है संदेशा साजन का ,बन बारिश आज।
दिल में बुलबुले आज फिर उठ उठ जाए,
न जाने किसे पास बुलाये।
"कैसे, क्या, क्यों, मानो, जानों", क्या पता?
आज तो फिर जीना है एक दफ़ा।
इंद्रधनुष के झूले में आओ साथ-साथ,
खेले-खुदें, जी लें बचपन इस सावन फिर एक दफ़ा।।
© Pratik Anand
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घुमर-घुमर के आये सावन।
पीहू बोले, नाचे मोर
नाचे मन इस उपवन।
प्यार के मौसम में,
बहते पवन के मद्धम तरंग में,
प्रकृति करे सोलह श्रृंगार,
मानो, आया है संदेशा साजन का ,बन बारिश आज।
दिल में बुलबुले आज फिर उठ उठ जाए,
न जाने किसे पास बुलाये।
"कैसे, क्या, क्यों, मानो, जानों", क्या पता?
आज तो फिर जीना है एक दफ़ा।
इंद्रधनुष के झूले में आओ साथ-साथ,
खेले-खुदें, जी लें बचपन इस सावन फिर एक दफ़ा।।
© Pratik Anand
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