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कली ।
छोटी सी कली थी,
हसती मुस्कुराती थी।
झूमती नाचती,
बलखाते चलती थी।
कली थी, फिर फुल बन गयी।
अनजान राहों में,
मशगूल हो गयी।
एक दिन आया, जिंदगी में उसके एक भंवरा।
नई आशाओं का नया सवेरा।
भंवरा गाता लहराता था,
कली खिलखिलाती थी।
अचानक से एक बाढ़ सी आयी,
कली की खिलखिलाहट,
बारिश बहा ले गयी।
कली की रौनक मुरझा गयी थी।
अनचाही घटना उसे,
खाएं जा रही थी।
कहना था कली को,
कुछ शायद मुझसे।
मगर तब तक वह तोड़ी जा चुकी थी।।
-शिवाजी
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