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#क्या लिखूं
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
राग लिखूँ रंग लिखूँ
यौवना का अंग प्रत्यंग लिखूँ
वैमनस्य लिखूँ द्वेष लिखूँ
प्रतिदिन बदलता परिवेश लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
विरहिणी का विरह लिखूँ
या प्राणियों का कलह लिखूँ
सास बहू का जिरह लिखूँ
या झगड़ों का सुलह लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
अभिनेता का अभिनय लिखूँ
या उनका अनुनय विनय लिखूँ
विचरण शनैः शनैः लिखूँ
या आलिन्द का निलय लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
सत्ता का राजकाज लिखूँ
मरता किसान सड़ता अनाज लिखूँ
कल होने वाला आज लिखूँ
या फिर बिकता समाज लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
आचार पर विचार लिखूँ
या भाषण या प्रचार लिखूँ
बढ़ता व्यभिचार लिखूँ
या बदलती सरकार लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
कामायनी का श्रृंगार लिखूँ
या राधा कृष्ण का प्यार लिखूँ
दो दुश्मनों की तकरार लिखूँ
इसकी जीत उसकी हार लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूं
व्यवस्था से जनता त्रस्त लिखूँ
या प्रणाली पूरी भ्रष्ट लिखूँ
अधिकारी नशे में मस्त लिखूँ
या समाज पूरा पस्त लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूं
#जुगनू
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
राग लिखूँ रंग लिखूँ
यौवना का अंग प्रत्यंग लिखूँ
वैमनस्य लिखूँ द्वेष लिखूँ
प्रतिदिन बदलता परिवेश लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
विरहिणी का विरह लिखूँ
या प्राणियों का कलह लिखूँ
सास बहू का जिरह लिखूँ
या झगड़ों का सुलह लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
अभिनेता का अभिनय लिखूँ
या उनका अनुनय विनय लिखूँ
विचरण शनैः शनैः लिखूँ
या आलिन्द का निलय लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
सत्ता का राजकाज लिखूँ
मरता किसान सड़ता अनाज लिखूँ
कल होने वाला आज लिखूँ
या फिर बिकता समाज लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
आचार पर विचार लिखूँ
या भाषण या प्रचार लिखूँ
बढ़ता व्यभिचार लिखूँ
या बदलती सरकार लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूँ
कामायनी का श्रृंगार लिखूँ
या राधा कृष्ण का प्यार लिखूँ
दो दुश्मनों की तकरार लिखूँ
इसकी जीत उसकी हार लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूं
व्यवस्था से जनता त्रस्त लिखूँ
या प्रणाली पूरी भ्रष्ट लिखूँ
अधिकारी नशे में मस्त लिखूँ
या समाज पूरा पस्त लिखूँ
बहुत दिन से सोच रहा कुछ लिखूँ
पर लिखूँ तो क्या लिखूं
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