...

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ख़त

कल फिर उसका सलाम मिला है
ख़त में मेरा नाम मिला है
दिल हुआ है पागल सा
के संजोग से ये पैगाम मिला है

बड़े दिन बीते मुलाक़ात हुए
ज़ाहिर तुमसे जज़्बात हुए
ये सब कहने बाद सनम के
मुझ से शुरू सवालात हुए

नज़्में अच्छी लिख लेते हो
खुद पीड़ा में दिख लेते हो
ज़मीर बचा है थोड़ा या
शोहरत की खातिर बिक लेते हो

मेरी ख़ामी चीख-चीख बतलाते हो
‘ऐब मेरे तुम हर्फ़-हर्फ़ कह जाते हो
ख़ुद्दार कहूँगी मैं भी तुमको
जिस दिन पन्नों पर खुद की बातें हो

माना हुई कुछ खताएं मुझसे
मजबूरी कैसे बताऊं तुमसे
बेबस,बेकस,लाचार थी मैं खुद
पर कभी न की थीं ज़फाएं तुमसे

हमेशा तुमने वक्त़ लिया
वादा झूठा हर वक़्त किया
अफ़सोस रहा बस इतना कि
तुम्हें वक़्त से ज्यादा वक्त़ दिया

तुम मुझको कभी भी जान न पाए
वक़्त की कीमत पहचान न पाए
कहती रही मैं कितना तुमको
पर कुछ करने की ठान न पाए

तुम्हारी ख़ातिर तो मैं सब कुछ सह लेती
जिस दिशा को कहते हां उस ही में बह लेती
इश्क़ से तुम खुद ही भागे थे ना
फ़िर भला मैं कब तक उम्मीद में रह लेती

क़ुसूर अपना कब तक यूं छिपाओगे
नासमझी के किस्से कब बतलाओगे
किसी रोज़ ग़र मिल जाएं हम
तुम नज़रें कैसे मुझसे मिलाओगे


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मशहूर हो गए हो ना तो ये नाम तुम्हारा तुम्हें मुबारक
अब बुरा न मानेंगे हर इल्ज़ाम तुम्हारा तुम्हें मुबारक
कुछ गीत पुराने थे जो मुझ पर वे भी जल्दी लिख देना
लिखते रहो बस ऐसे ही ये काम तुम्हारा तुम्हें मुबारक

हमने कह ली मन की अब रही कोई भी रार नहीं
सहेज के रखना कि ऐसे ख़त मिलेंगे दूजी बार नहीं
पता नहीं लिखा है ख़त में ताकि जवाब न दे पाओ
कि पूछोगे तो ये न कह दें कि अब भी है तुमसे प्यार वही

- सदैव तुम्हारी


© random_kahaniyaan

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