...

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यही अंत नहीं है.
ये रात क्या होती है हमसे पूछे कोई...
मोहोब्बत करते हो मानु अगर गीले तकिये पर सोये कोई...
नींद आती नहीं है और सवेरा हो जाता है...
सुबह होती नहीं के फिर अंधेरा हो जाता है...
दिन काटना तो आसान है कई हद तक...
रातो मैं बस उसकी यादो का बसेरा हो जाता है...
दीवारे चीखती है आधेरा खाने को दौड़ता है...
मोहोब्बत मैं हर कोई अपने मेहबूब को पाने को दौड़ता है...
मिलती नहीं है मोहोब्बत अब इस ज़माने मैं...
और कोई फ़ायदा नहीं है किसी को अपने गम-ए-दास्तान सुनाने मैं...
बस एक मज़ाक का किरदार बन कर अधूरी कहानी मैं रह जाओगे...
रात को सोओगे तभी तो नये सपने देख पाओगे...
यु गला ने घोटो तुम अपनी मुस्कान की...
अभी बाकि है उड़ान ऊँचे आसमान की...
निकलो इस अँधेरे से और उजालों की आदत डालो...
चली गई है वो ये बात अपने मन को समझालो...
उसका आना अब सायद बस मैं नहीं है...
उठो जागो और आगे बढ़ो यही अंत नहीं है...
© कुshal सिंgh